कभी किसी "बस स्टैँड" पर कुछ
घंटे तो बिताया ही होगा आपने! चाहे छोटा शहर हो या बड़ा,बस स्टैँड का
माहौल कमोबेश पुरे देश मेँ एक जैसा ही होता है।खुलती जाती आती बसेँ,रह रह के हार्न
दबाता ड्राईवर झोला ले के दौड़ते पसेँजर,उसके पीछे अपनी मुँगफली का पैसा लेने
दौड़ता झालमुड़ी वाला:-)।कुछ तो खास किस्म के पसेँजर होते हैँ,वो पुरे समय बस
के पास खड़े वक्त गुजारेँगेँ,पर जैसे बस स्टार्ट हुआ और हार्न दबा कि वो बेल्ट ढीला किये
दीवाल की तरफ दौड़ेँगेँ जहाँ मोटे अक्षरोँ मेँ लिखा होता है" कृपया यहाँ ...
ना करेँ"!असल मेँ ये पढ़ते आदमी निश्चिँत हो जाता है कि ओ आदिकाल से यहाँ पर
"किया जा"रहा है अतः इमरजेँसी मेँ थोड़ा कर ही दिया तो अपराध नही है।ऐसा
आदमी जब तक बेल्ट पेँट पकड़े दौड़ते हाँफते न चिल्लाये "हो हो जरा रोक के
ड्राईवर साब रोक के" तब तक वो सीट पर फीट हो बैठ ही नही सकता। अच्छा स्टैँड
पर बिकने वाली कुछ खास चीजेँ होती हैँ जो हर बस स्टैँड पर हाथ और कंधे पर ही मेँ
बाजार लिये लटकाये बेचते दुकानदार आपको दिख जायेगेँ,जैसे-ताला चाबी,20 रूपये तक के
बच्चे के खिलौने,कलम,कंघी,बेल्ट,जैसे एक्सेसरीज।इन बेचने वालोँ का धैर्य और आत्मविश्वास IIM अहमदाबाद के प्रबंधन
के स्नातक से ज्यादा होता है।आत्मविश्वास इतना गजब कि मैँने एक बेल्ट बेचने वाले
को देखा वो एक धोती पहने बुजुर्ग को बेल्ट दिखा रहा है:-)।वो बुजुर्ग बेल्ट के
बकलस को ऐसे खीँच के उसकी मजबुती देख रहे थे जैसे कोई ट्रैक्टर रस्सा लगा के ट्रक
खीँच रहा हो। बुजुर्ग ने कहा" केतना दिन चलेगा,केतना पैसा इसका?" बेचने
वाले ने झट बेल्ट बुढ़े के हाथ से लिया और जोर से तीन बार जमीन पर पटका "लो
तोड़ के दिखा दो बाबा,ले जाओ एक नंबर चीज है,मिलता नही है,सुपर पीस है,एक दाम है
भईया.कचकच नय,बोहनी का टाईम है,लास्ट 60 रूपिया लेँगेँ"! ना हाँ करके 50 मेँ मामला पट
गया।मुझसे रहा ना गया,मैँने पूछा बाबा आप बेल्ट का क्या किजियेगा? बुजुर्ग ने
हँसते सकुचाते कहा" ऊ पोतवा के लिए ले लिये हैँ,मैटरिक किया
है.कालेज जायेगा अब"।मेरे रोँगटे खड़े हो गये।हाँ ये लाखोँ की गाड़ी मेँ हजारोँ
के कपड़े पहन तैयार हो प्लान कर करोड़ो के मॉल मेँ खरीददारी करने वाला खरीददार नही
है,ये तो वो है जो
बिना किसी प्लान बैठे बैठे केवल 50 रूपये मेँ जिँदगी का सबसे सार्थक लगने वाला सामान खरीद लेता
है।हाँ इसका पोता कॉलेज जो जायेगा बेल्ट पहन के साहब।सच बुढ़ापा अपने बस के भागमभाग
ढेलमपेल वाली भीड़ के सफर मेँ भी भविष्य को लेकर कितना सजग है,कितना संवेदनशील
है।हाँ भला आज के बेफिक्र जवानी मेँ ये सजगता और संवेदना कहाँ के अब कोई हामिद
दादी के लिए चिमटा खरीद लिये जाय। अच्छा चलिए स्टैँड की दुसरी ओर:-)।पानी वाली चाय
और बिना दाना का मुँगफली,झौँसाया भुट्टा,पहलवान दाँततोड़ु चना ये सब बस स्टैँड
का सेट मेन्यु है। अच्छा स्टैँड पर आपको किताब विक्रेता मिलना ही मिलना है।ये
नर्सरी की अंग्रेजी किताब से शुरू करेगा।फिर जोर जोर से हनुमान चालीसा,शिव चालीसा
बोलेगा और फिर चुटकुले की किताब निकालेगा"सर जीजा साली के हँसी के चुटकुले
निकालेँ"! फिर गाने की किताब।मालुम आज यो यो हनी के दौर मेँ मुकेश के दर्द
भरे नगमे और रफी के रोमाँटिक गीत अगर जिँदा हैँ तो इसी किताब वाले के कंधे पर।और
अँत मेँ धीरे आवाज मेँ कहेगा"जी कुछ और लिजिएगा क्या:-)"।आदमी झेँप जाता
है और अपनी उत्कंठा को मिनिमाईज करते हुए आदमी अंत मेँ "सरस सलिल" ले के
खुद को समझा बुझा लेता है।और हाँ अक्सर बस मेँ एक खास आईटम बिकता है"हाथ से
जूस निकालने की घुरनी वाली मशीन"।ओह ऐसा मौसंबी का रस निकाल के दिखाता है कि
क्या कहेँ,पर मैँने दस बार लिया होगा आज तक एक ग्लास ढंग से नहीँ निकला
संतरा या मौसंबी का रस।:-) बस खुल गई।।बस स्टैँड सदा खुला रहता है।यही सब तो उन
कुछ जगहोँ मेँ हैँ जहाँ जीवन कभी ठहरता नहीँ है।आना जाना लगा है साहब।हम सब एक बस
के यात्री ही तो हैँ साहब:-)।जय हो।
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