प्रिय मित्र लल्टु, कल
ही गाँव से लौटा हूँ।तुम्हारे घर पर भी सब ठीक है।चाची(तुम्हारी माँ) ने तुम्हारे
लिए पंडी जी से जन्मपत्री दिखाई थी,फिर कहने पर दुर्गा पूजा कराया।तुम्हारे नौकरी
चाकरी के लिए परेशान है।तूम्हारे खातिर पूजा का प्रसाद और हवन का भभूत भेजा है,शाम
को जब गाँजा खरीदने कैँपस से बाहर निकलो तो बताना हौज खास मेट्रो पे आ दे
दूँगा।मित्र अब माँ तो माँ ठहरी,उसे मैँने ये बताना उचित ना समझा कि तूम अब
महिषा जी के साथ हो गये हो,उनको इसका ऐतिहासिक और समाजिक न्यायिक कारण
समझाने मेँ एतना देर लगता कि मेरा ट्रेन छुट सकता था और शायद तब भी आकंठ
दुर्गाभक्ति मेँ डुबी वो अनपढ़ बुढ़ी माँ महिषा जी के सामाजिक न्यायिक पक्ष को समझ
पाती कि नहीँ,पता नहीँ।खैर तुमने अच्छा किया कि एक नया खेमा
धर लिये हो।इतने साल तक साथ साथ दुर्गा पूजा कर भी हमने कौन सा तीर मार लिया,रेलवे
मेँ गैँगमैन तक का भी तो फार्म ना किलियर हूआ।तो अब क्युँ ना एक बार महिषा ट्राई
किया जाय।दोस्त मैँ तुम्हारे साथ हूँ।लेकिन अब जब खुल्लमखुल्ला महिषा जी के साथ हो
तो इन्हेँ समाज मेँ अधिक से अधिक मान्यता दिलाने और स्थापित करने के लिए थोड़ा
मेहनत भी करना होगा,ये साल भर मेँ एक दिन शहादत दिवस मनाने से कुछ
ना उखड़ना लल्टु भाय।उल्टे डिमोरलाईज फिल होता है।देखो हमेँ वो प्वाईँट पकड़ना होगा
जिससे दुर्गा या अन्य देवी देवता ने हजारोँ साल से अपना मार्केट जमाया है।देखो ये
दुर्गा समर्थक अपने बाल बच्चोँ का नाम भी दुर्गा,भवानी,शारदा इत्यादि रखते हैँ जिससे रोज
पुकारने बोलने से ये नाम जेहन मेँ रहे और प्रभाव बना रहे।अब हमेँ भी अपने लोगोँ का
नाम महिषासुर,भैँसचढ़ा,लमबलवा,ईत्यादि रख इस नाम को प्रचलित कर इसे मान्यता
दिलानी होगी।सोचो कोई लड़का पीएचडी कर निकलेगा और नाम होगा "डॉ महिषासुर
मंडल",कोई प्रोफेसर होगा "भैँसचढ़ा
चौबे"।कितना जादुई बौद्धिक छवि बनेगा तब महिषा जी का।अच्छा जैसे ये दुर्गा
खेमे वाले अपने मेँ कहते हैँ"फलना दुर्गा जैसी सुंदर है,देवी
लगती है",हमेँ भी अपनोँ के बीच महिषा जी की आकर्षक छवि
गढ़नी होगी और एक दुसरे को बोलना होगा"महराज केतना सुंदर लड़का है,एकदम
महिषासुर लगता है,दाँत देखिये,लगता है दाँते से नारियल फाड़
देगा"।अच्छा जिस तरह दुर्गा खेमे वाले अपने देवी गुणगान के लिए दुर्गा चालिसा,सप्तशती
और आरती वगैरह लिखा है हमेँ भी कुछ नया लिख लॉँच करना होगा।जैसे चालिसा कुछ ऐसा
लिखा जा सकता है"महिषा सोये थे खा के मुर्गा,सुतले मेँ त्रिशुल भोँक गईँ
दुर्गा।।महिषा को कंफ्युजन भारी,घर घुसी कैसे ये नारी।।महिषा ने गुस्से मेँ
देखा,दुर्गा ने सुदर्शन फेँका।।महिषा को हुई चिँता
भारी,एतना पावर मेँ कैसे एक नारी।।महिषा ने एक चाकू
निकाला,दुर्गा ने तलवार और भाला।।दुर्गा बोली तू शांति
भंग करता है,लेडिज को तंग करता है।।बोले महिषा आरोप है झुठा,इस
हफ्ते तो ना किसी को लुटा।।महिषा तू बामपंथ समर्थक,काम करता है खाली निरर्थक।।महिषा बोले
रह होश मेँ देवी,वर्ना वसुलूँ जगत से लेवी।।भले दे त्रिशुल मेरे
कंठ पर,वार ना करना बामपंथ पर।।ऐ नारी ले काम अकल से,सोये
मेँ मारे है छल से।।ऐ महिषा अब होश मेँ आजा,खड़ी यहीँ हूँ जा मुँह धो के आजा।।तू पुरूष मारे
है बल से,मैँ मारी तो बोले छल से।। मित्र लल्टू कुछ ऐसा
चालिसा लिख हम महिषा जी के प्रति सहानुभुति और उनकी वीरता का भोकाल बना दुर्गा को
छल से मारने वाली साबित कर उन्हे बैकफुट पर धकेल सकते हैँ।अच्छा एक मेन बात कि
दुर्गा खेमा उन्हेँ अपनी माँ बता जय माता दी टाईप टैग लाईन लगाये रहता है,क्युँ
ना हम भी महिषा जी को एज ए फादर लॉँच कर "जय पप्पा जी" टैग लाईन बना
लेँ।अच्छा ये लोग दुर्गा जी के बारे मेँ कई मिथक जुटा उनको गुणकारी,शक्तिशाली,विद्वान,नैतिक
दिखाने वाला ग्रंथ रचे हैँ।इसके जवाब मेँ हमको भी कुछ झुठ साँच जोड़ एक महिषासुत्त
रचना होगा जिसमेँ किस्सा होगा"महिषा एक बहुत ही भोला भाला सीधा नौजवान था
जिसका सारा ध्यान अपने कॉलेज की पढ़ाई पर रहता था।एक दिन कॉलेज जाते वक्त उसे
रास्ते मेँ कुछ लड़कियोँ ने छेड़ दिया।उसने तुरंत कॉलेज जा रोते हुए प्रिँसिपल से उन
लड़कियोँ की शिकायत कर दी।इसी बात से क्षुब्ध लड़कियोँ मेँ एक दुर्गा ने बदले की
भावना से रात को लाईब्रेरी मेँ पढ़ते पढ़ते सो गये महिषा पर छल से वार कर
दिया"।मित्र लल्टू ये कथा पढ़े लिखे बुद्धिजीवियोँ को अपने खेमे मेँ
खिँचेगी।एक पढ़ने लिखने वाले भोले युवा महिषा का शोषण कोई भी करूणा और दया एवं
प्रगतिशिलता से भरा बुद्धिजीवि बर्दाश्त ना करेगा और हमारे महिषा खातिर देश भर मेँ
समर्थन जुटने लगेगा।अच्छा लास्ट मेँ एक आरती भी लिखना होगा जिसे एक मीका से,दुसरा
दलेर मेँहदी से गवा लेँगे क्योँकि अनूप जलोटा और नरेँद्र चंचल दुर्गा खेमे के गायक
हैँ और उनका संगीत भी अब आउटडेटेड हो चुका है।मीका गायेगा"बैल,भैँसन
लंगुर की..आरती कीजे महिषासूर की"और दलेर एक झुमाऊ आरती देँगे"सड्डे
भैँस चढ़ोगे तो ऐश करोगे"।देखना ये सुन लोग पल्सर बेच भैँस खरीद लेँगे।तो
मित्र लल्टू अगर सच मेँ महिषा के साथ प्रतिबद्धता के साथ खड़े हो उनके लिए कुछ करना
चाहते हो तो ये सब उतनी ही इमानदारी करके दिखाओ जितनी ईमानदारी से दुर्गा खेमे
वाले अपनी माँ दुर्गा के लिए कर दिखाते हैँ।और केवल ये सब बस एक क्षणिक आवेश मेँ
आके यूनिक दिखने का तमाशा भर है और बस विरोध के लिए विरोध का हथियार भर है तो मुझे
अफसोस है कि मैँ एक अवसरवादी भड़काऊ नकारे आदमी का मित्र था जो ना मेरा हुआ,ना
माँ के भभूत का,ना दुर्गा का,ना महिषा का।अब हजारोँ साल से स्थापित
मान्यता को एक दिन की बकलोली या एक शहादत दिवस और चंद पर्चोँ पोस्टरोँ से तो ना
ढाह पाओगे मित्र।कुछ तगड़ा और लगातार करो। एक ऐसा बस विध्वंसक भर ना बनो जो कल अपने
मतलब और अपने विचारधारा के खुराक के लिए रावण और भस्मासूर का भी उपयोग कर ले।कम से
कम जिसके साथ रहो.पुरी ईमानदारी के साथ मरते दम रहना..चाहे दुर्गा या चाहे
महिषा।भयंकर शुभकामानाएँ तुमको।जय हो।
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