Saturday, November 15, 2014

रेडियो .....रेडियो....रेडियो

"रेडियो" है आपके पास?जी ये मोबाईल वाला "फैन्सी क्रेजी ढीप ढाप टीप टाप चैँ पौँ कि कुँ एफ एम रेडियो" की बात नहीँ कह रहा हुँ। आज अचानक एक सब्जी वाले ठेले पर रेडियो बजता सुना तो खयाल आया कि हाय अब कहाँ रहा "रेडियो" वाला जमाना।रेडियो युँ तो एक जमाने मेँ देश दुनिया से जोड़ने का सबसे सहज और सस्ता साधन रहा जो शहर और गाँव दोनोँ मेँ लोकप्रिय था।पर जो यश और ईज्जत "रेडियो" ने हिन्दुस्तानी गाँवोँ मेँ पायी वो जलवा शहर मेँ कहाँ था रेडियो का। असल मेँ गाँव के शांत वातावरण मेँ 5 बजे भोरे या 8 बजे राते जब रेडियो बजता था तो मानो साक्षात ब्रह्मा की आकाशवाणी हो रही।शहर की चिल्ला चिल्ली मेँ भला रेडियो की आवाज खुद को तो बड़ी मुश्किल से सुनाई पड़ती,भला कोई और क्या सुने।गाँव मेँ देखते, भोरे भोर 5 बजे कि झा जी झट पट उठे,रेडियो उठाया,टार्च से निप्पो बैटरी निकाली,रेडियो मेँ डाला,मीडियम लगाया और लगा दिया "आकाशवाणी भागलपूर"!पास के कुँआ के पास बने तुलसी जी के चबुतरा पर रखा रेडियो,उसमेँ आ रहा है अनुप जलोटा का भजन"प्रभु जी तुम चंदन हम पानी"।इधर झा जी लोटा दतुवन ले के खेत निकले उधरे दूर तक चिड़िया की चह चह और भजन की आवाज मतलब माहौल ऐसा जैसे सूरज के उगने के पहले गाँव मेँ स्वागत गान गाया जा रहा हो। तब तक चबुतरा पर जो आ रहा है ऐँठ के मेगा हट्रज बदल दे रहा है:-)।रेडियो का मतलब एक सामाजिक यंत्र से था तभी तो बेफिक्र हो के रेडियो को सवेँऐँठन हेतु चबुतरा पर छोड़ झा जी खेत निकल लेते थे। इतने मेँ सात बजा कि भुनेशर चौधरी मास्टर साब के घर बलदेव रजक,लोकन महतो,हरिहर पांडे सारे मास्टर जमा हुए।छोटका खटिया पर खोँस के रेडियो रखल है।"बीबीसी लगाईए चौधरी जी, समचरवा आ रहा होगा" मंडल जी बोले।रेडियो पर बीबीसी का माहौल वैसे था जैसे रामायण मेँ राम का।जैसे समाचार वाचक ने कहा"अब आप नीरज कुमार अकेला से समाचार सुनेँ" कि सारे चेहरे सावधान और कान की दिशा रेडिये के स्पीकर की तरफ।क्या मजाल कि उस बीच मेँ कोई टोक दे।गाँव मेँ सबके उसमेँ भी मास्टर साब जैसोँ के लिए बीबीसी की खबर ही जीवन का ज्ञान था जिसे बाँच कर दिन भर चाय पीना और खैनी खाना होता था।अच्छा समाचार वाचक भी ऐसा,एकदम निस्काम निर्विकार भाव से दुःख और खुशी दोनोँ के न्युज एक ही भाव मेँ पढ़ने वाला।समाचार खतम कि समीक्षा शुरू" देखिये पाकिस्तान का,कोय भरोसा नहीँ,बीबीसी जैसा बोल रहा है भयंकर युद्ध ना हो जाय"।तब तक चौधरी जी" ई रिटायरमेँट के एजवा फेर 62 कर दिये,सुने कि नही जो बोला अभी बीबीसी"!रजक बोले "नही त"। "का महराज बीबीसी सुनते हैँ अउर धयानो नही देते हैँ,अभिये त बोला"। दोपहर हुआ कि काँख मेँ रेडियो लिये बल्लु यादव पंचायत भवन के चबुतरा पहुँच गये जहाँ ताश चल रहा है। अचानक रामजीतन चिचियाया"अरे मैचवा लगाओ बे,भारत सिरलंका मैईच है,शुरूओ हो गया होगा"।जी यही वो अवसर होता था जब ताश खेलने सभी 5वीँ फेल अंग्रेजी मेँ कमेँट्री सुन भी समझ जाते थे कि कब चौका लगा और कब आउट हुआ। आहा" बिनाका गीतमाला":-)पुछिये मत!अमीन सयानी के आवाज का जादू आज तक गाँव मेँ कायम है।रात के 8-9 बजे के बाद खा पी के मुखिया जी के दलान के ठीक पीछे वाले बगीचा मेँ मँगरू मँडल अपना खटिया बिछैले है,मार ऐँठ रहा है चाबी,कभी बंगला,कभी खेल,कभी समाचार तो कभी नेपाली चैनल की गीँ चाँ के बाद लगा एकबैगे हिँदी गाना।गर्मी की रात,पछिया हवा और खटिया तरे रखा रेडियो। बज रहा नशा "दिल ढुँढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन"!खतम होते बजा "एक अकेला इस शहर मेँ,आबो दाना ढुँढता है जैसे गीत।मानो पूरा वातावरण खुद मेँ एक आर्केस्ट्रा बजा रहा हो। सच सुबह से लेकर रात सोने तक रेडियो गाँव की दिनचर्या का यंत्र था।मुश्किल से महीने मेँ एक सिनेमा देखने वाली पीढ़ी को रेडियो ही था जिसने लता मुकेश और रफी के गीत से जवान और जिँदा बनाये रखा।गाँव के न जाने कितने रसिये को जिँदगी का रंगीन रस पिलाने वाला एकमात्र वो "रेडियो" ही तो था। एक कायम जलवा था रेडियो का। गाँव की शादी हो और तिलक मेँ रेडियो ना मिला तो समझिये लड़की वापस।न जाने कितने रूठे दुल्हे को मनाया और घर बसाया इस रेडियो ने। फिलिप्स और संतोष कंपनी का रेडियो तो मानो हर दुल्हे का सैवाला था।अगर भूल चूक से शादी मेँ छुट गया तो गवना मेँ रेडियो संग ही बहुरिया ससुराल आती थी।आँगन भले दुल्हनिया के पाजेब से झनझन गुँजता रहे पर दुआर तो रेडियो के ही बोलने से गुलजार रहता था। हमारे एक मास्टर साब को रेडियो इतना प्रिय था कि उनके पड़ोस मेँ डकैत घुसा तो वो शोरगुल सुन पीछे से दिवाल फाँद भागे और 7 बरस के बेटे को अकेला छोड़ दिया पर रेडियो काँख मेँ दबाये रहे और सीधे थाने दौड़ वहाँ रेडियो रखा फिर वापस आ बच्चे का हाल जाना:-)। सच आज भी जहाँ रेडियो है वह गाँव जैसा भी हो,वहाँ कुछ भी हो ना हो पर वहाँ "सन्नाटा" नही है।जय हो

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