Wednesday, May 18, 2016

डिअर upsc के नाम नीलोत्पल का खुला खत

DEAR UPSC,

हाय..नमस्ते,

तुम्हेँ हिँदी मेँ ये पत्र लिख रहा हूँ।उम्मीद है किसी अच्छे हिँदी के ही जानकार से पढ़वाओगे।हम हिँदी माध्यम से तैयारी करने वाले एक प्रचंड आत्मविश्वासी छात्र हैँ जिसने एक बार फिर से अपने ईश्वर अल्लाह का नाम ले UPSC का फार्म डाल दिया है।ऐसा हम कई साल से करते आ रहे हैँ,ये जान के भी कि अभी अभी जो रिजल्ट तुमने दिया है उसमेँ लगभग डेढ़ हजार मेँ केवल 26 लोग हिँदी माध्यम के पास हो पाये हैँ।लेकिन तुम्हारे प्रति हमारी श्रद्धा का आलम ये है कि हमेँ इससे कोई फर्क नहीँ पड़ता कि कितने चयन हुए या आगे एक भी ना होँगे बल्कि पता नहीँ हम तो क्या खा के पैदा हुए,क्या जीवटता ले के धरा पे आये,किस अज्ञात् शक्ति के भरोसे इतनी निश्चिँतता से लबालब रहते हैँ कि जैसे ही तुम्हारा फार्म इंटरनेट पर लांच होता है हम आधे घंटे के अंदर सारे फार्म भर निवृत्त हो जाते हैँ और एक सजग"फार्मभरूआ"छात्र के रूप मेँ हमारी अंतिम ईच्छा यही रहती है कि बस PT परीक्षा का सेँटर"UPSC के बिल्डिँग"मेँ पड़ जाये क्योँकि हम जानते हैँ इसके आगे तुम कभी हमेँ उस बिल्डिँग मेँ पाँव रखने का मौका नहीँ देने वाले। डियर UPSC, वैसे तो तुमने 2011 से ही ये साफ कर दिया था कि अब हिँदी माध्यम वाले आला अधिकारी बनने का सपना ना देखेँ और जा के किरानी,कलर्क,चपरासी जैसे नौकरी के लिए आपस मेँ मुड़ी लड़ायेँ।तुम्हेँ चाहिए थे वैसे नमुने जो भले कम पढ़े होँ,कुछ भी पढ़े होँ पर अंग्रेजी मेँ पढ़े होँ और अंग्रेजी खाते पीते होँ। पर हम भी ठहरे ढीठ ओर थेथर।हमने सड़क पर आंदोलन छेड़ दिया।बोला सीसैट हटाओ।क्वालीफाईँग हो भी गया।अब फिर आंदोलन।बोले हैँ अटैँम्प्ट बढ़ाओ,शायद तुम एक दे भी दो।पर अब मुद्दा ये है कि हम क्या सीसैट क्वालिफाईँग और बढ़े अटैँम्पट ले के उसका लिट्टी सेँके।अबे जब तुमने ये तय ही कर रखा है कि हिँदी वालोँ से झाड़ु मरवाओ,बाहर करो ब्युरोक्रेसी से,तो हम 25 अटैम्प्ट लेकर भी क्या उखाड़ लेँगे जब तुमने हमेँ कब्र मेँ गाड़ देने का ही सोच रखा है यार।डियर UPSC, सच बताओ ये सब बस इसलिए है कि हिँदी माध्यम मेँ प्रतिभा समाप्त हो गई है?क्या 2010 तक जो लोग हिँदी वाले सलेक्ट हुए हैँ उनको छुट्टी दे सरकार इंग्लैंड से किराये पर अधिकारी ला काम चला रही है?क्या यही सीट भरने को जल्दी जल्दी एक एक बार मेँ एक हजार इँग्लिश माध्यम वाले को ले रहे हो।क्या हिँदी से सलेक्ट अधिकारी नौकरी मेँ वैदिक संस्कृत बोलते हैँ?क्या वो प्राकृत मेँ फाईल देखते हैँ?सच वो अंग्रेजी नही जानते क्या डियर?अच्छा छोड़ो, एक सच बताओ क्या अंग्रेजी मेँ बकलोल नहीँ पैदा होते?क्या इंग्लैँड मेँ भकचोन्हर नहीँ पैदा होते क्या?क्या बस भाषा ही योग्यता का आधार है क्या?क्या आज तक देश चलाने वाली भारतीय भाषाएँ अचानक से एकदम नपुंसक हो गई?सारी प्रतिभा मीटिँग कर भूत बन अंग्रेजी मीडियम मेँ शिफ्ट कर गईँ?क्या चेतन भगत राष्ट्रीय दार्शनिक मान लिया गया क्या? फिर ये सब क्या है डियर?सीधे सीधे क्योँ नहीँ कहते कि तुमको सिविल सेवक नहीँ बाबूगिरी और जीहुजुरी वाले "वेल बिहेब्ड,वेल ट्रेँड स्टॉफ"चाहिए।तुमको चाहिए वो अधिकारी जो किसी अधिकार की माँग ना करे और सेवा को कर्तव्य नहीँ बल्कि एक जॉब समझे।वो भावुक और जज्बाती नहीँ बल्कि पेशेवर धंधेबाज हो और फाईल को मंदिर नहीँ दुकान समझे जिसका सौदा किया जा सके।यार UPSC अगर केवल अंग्रेजी जानना ही मुद्दा था तो जब इटली से आयी सोनिया हिँदी सीख सकती तो क्या हम मसुरी जा अंग्रेजी ना सीख पाते?जब वीरेँद्र सहवाग जैसा कड़ा नजफगढ़ी अंग्रेजी सीख सकता है तो क्या एक आजमगढ़ी और प्रतापगढ़ी ना सीख पाता अंग्रेजी।जब दसवीँ फेल तेँदुलकर जरूरत पर अंग्रेजी जान गया तो IAS की कंपलसरी अंग्रेजी पास कर गया लड़का ना सीख पाता।छोड़ो ये सब बहाने।मामला अब क्लास और कल्चर का है डार्लिँग।हम ग्रामीण भारत के लड़के सच मेँ सेवा देने आते हैँ और इसी कारण हमारा पसीना महकता है बड़े साबोँ को.क्योकि हम जनसेवक होना चाहते हैँ,बाबूओँ के गुलाम नहीँ।और जिस अंग्रेजी वाले पर तुम इतराते हो ना,उसी मेँ से आये रोमन सैनी जैसे टॉपर तुम्हारी नौकरी को लात मार परीक्षा प्रणाली को खिलौना बना बिना पढ़े PT पास करने के ट्रिक बता रहा है यूट्युब पर।सोचो जिस सेवा मेँ जाने के लिए हम अपनी जिँदगी लगा देते हैँ एक ज्यादा अच्छी जिँदगी के लिए उसी सेवा को लात मार चले जाते हैँ अंकुर गर्ग और रोमन सैनी जैसे लोग।क्या एथिक्स देखा था उनमेँ सिविल सेवा का तुमने?कैसे जाँचा था उनकी जनसेवा की भावना को?कैसा कमजर्फ साक्षात्कार बोर्ड है तुम्हारा जो उन क्रेजी इंग्लिश एजुकेटेड टैलैँटेड युथ के अंदर बैठे सुविधाभोगी लाईफ की चाहत को नहीँ पकड़ पाया और उन्हेँ सिविल सेवा का टॉपर बना अपना मजाक बनवाया तुमने।सारा एथिक्स हिँदी मिडियम का जाँचते हो?हमारा रिकार्ड देखो..चाहे आँधी या तुफान आये पर अपनी सारी प्रतिभा नौकरी करने मेँ लगा दी,भागे नहीँ हम।सो सुनो डियर,ये टैलेँट का बहाना मत दो।खुब टैलैँट है हिँदी मीडियम मेँ और ये सिद्ध भी है पहले के रिजल्ट से।अपनी क्रेजी फैँसी अंग्रेजोफोबियाई कल्चर मेँ फँसी सोच से मुक्त हो जरा सुधार करो खुद मेँ।देश जलाने के लिए बारूद मत बटोरो तुम हमेँ व्यवस्था से बाहर करके।और हाँ अगर ये ही रवैया रखना चाहते हो तो सुनो अबकी जब एडमिट कार्ड भेजने का डेट आये न, तो घर बार का पता है ही तुम्हारे पास।प्लीज अबकी हमेँ एडमिट कार्ड मत भेजना,इसके बदले हमारे पिता को एक चिट्ठी भेज देना जिसमे लिख देना"कृपया अपने बेटे को घर वापस बुला लेँ,वो हिँदी माध्यम से पढ़ने वाला एक प्रतिभाशाली और योग्य अधिकारी बनने की क्षमता वाला छात्र है पर फिर भी किसी जन्म मेँ हम उसका सलेक्शन नहीँ करेँगे क्योँकि वो आगे चलके एक अच्छा सिविल सेवक बनना चाहता है जबकि हमेँ अच्छे जॉब करने वाले स्टॉफ बहाल करने हैँ।सो फालतु मेँ अपने योग्य बेटे बेटी के पीछे अपने सपने और पैसे खर्च ना करेँ-आपका UPSC अध्यक्ष,शाहजहाँ रोड,दिल्ली"।जय हो।

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