Monday, March 30, 2015

नेहरु और लोहिया

लोहिया जी और नेहरू जी एक समय विचारोँ के दो अलग अलग ध्रुव थे। लोहिया नेहरू के धुर विरोधी! नेहरु जी की आलोचना करते भाषा इतनी तल्ख की उन्होँने नेहरू के लिए एक बार कहा था" ये क्या पहनता है नेहरू चुड़ीदार पजामा!नेहरू तो तबलची लगते हैँ,नेता नहीँ" । ये मिजाज था लोहिया का नेहरू के प्रति।सब ऐसे ही चलता रहा। एक बार लोहिया काफी बीमार पड़े और कलकत्ता मेँ इलाज कराने गये।वहाँ भी तबियत बिगड़ी ही रही,वो अपने जानने वाले मित्र बालकृष्ण के यहाँ ठहरे थे।एक दिन उन्होँने वहीँ सबसे पुछा" मेरा परिवार का तो कोई है नहीँ,ना पत्नी,ना बच्चा,ना भाई और ना कोई रिश्तेदार,इधर तबियत भी इतनी खराब रह रही है,ऐसे मेँ बताओ तो वो कौन सी जगह है जहाँ मेरी सबसे ज्यादा देखभाल हो सकती है?" इस पर सबने अपने अपने तरह से सलाह दी।इस पर सबकी सुन लोहिया मुस्कुराये और सारे प्रस्ताव किनारे करते हुआ कहा जिसे सुन सब भौचक्के " जानते हैँ आपलोग,मेरी सबसे अच्छी देखभाल पंडित नेहरू के घर होगी,वहीँ रहुँगा कुछ दिन":-)। साहब ये थी उस जमाने की राजनीतिक परंपरा और एक आज की दोगली-तेगली-चौगली-पगली राजनीति..। अरे लोहिया-नेहरू के प्रताप पर पल रहे आज के नेताओँ, एक जरा सी भी वो बात ले आओ खुद मेँ..राजनीति गँगा नहा लेती।।जय हो।

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