Monday, March 14, 2016

Art of living

आदरणीय श्री पर फेर श्री,श्री श्री रविशंकर जी, प्रभु आपका जन्म तो पृथ्वी पर ईश्वर के उस अधुरे काम को पुरा करने के लिए हुआ है जिसे आलसी ईश्वर आधे मेँ छोड़ गया था।ईश्वर ने हमेँ जीवन तो दे दिया पर"जीने की कला" सिखाये बिना छोड़ के निकल लिया।बाद मेँ उसे जब याद आया कि हाय मानव को हम जीवन तो दे आये पर वो जीता कैसे होगा?जीने की कला यानि"Art of living" तो हमने सिखाया ही नहीँ..अब क्या किया जाय?तब बड़े मैराथन बैठकोँ के बाद श्री ब्रह्मा और श्री कृष्ण या श्री राम के जगह आपका नाम तय हुआ और इस भारी काम का लोड आपकी काया पर डाल दिया गया।अन्य क्षमताओँ के साथ साथ आप पर यकिन का एक कारण ये भी था कि आपके नाम मेँ दो बार "श्री"लगा था सो आपके इस "श्रीयसनेस" ने आप पर जिम्मेदारी बढ़ा दी।खैर आप आये धरती पर..आपने देखा मानव मेँ प्राण तो है पर जीने का तरीका बिलकुल नहीँ।सब कुछ पाषाणकालिन,आदिमयुग के जैसा।आपने देखा राष्ट्रपति भवन मेँ गाय बँधी है।संसद मेँ जूता दुकान खुला हुआ है।कॉलेज मेँ थियेटर चल रहा था।इंसानो ना खाने का तरीका आता था न किसी को कपड़े पहनने का।घरोँ के डायनिँग टेबुल पर बैठ घोड़े पनीर खा रहे थे आदमी गौशाला मेँ गर्दन मेँ रस्सी बाँधे नाद मेँ घास खा रहा था और फिर अपने किये गोबर से गोयठा बना उसे सुलगा उस पर तावा चढ़ा उसमेँ पाउडर गर्म कर रहा गाल पर लगाने के लिए।कोई दाल मेँ केला बोर के खा रहा था और कोई हथेली मेँ भात और आईसक्रीम सान के खा रहा था।एक को तो आपने जब कटहल की खीर के साथ लकड़बग्घे की पूँछ का अँचार खाते रोका तो उसने उल्टे आपको खाने बैठा आपके लिए एक बाल्टी लगाई,ड्रम मेँ पानी भर के दिया और आपके लिए भर बाल्टी कच्चे बकरे की चिप्स के साथ अलकतरे का सूप सर्व किया।आप अकबका गये।आपने देखा कि कुछ तो हाथ की जगह लात से खा रहे हैँ और चप्पल हाथ मेँ पहने हैँ।कुछ पर पेड़ पर चढ़ नारीयल मेँ डायरेक्ट मुँह लगाये हुए थे और तरबुज सीना से दबा चुर कर उसका मसाला वाला भुजिया बना के खा रहे थे।खाना तो खैर छोड़िये जो हुआ सो हुआ।आदमी को कपड़े पहनने का ढंग नही था।लोग फूलपैँट की जगह सागवान का पत्ता पहनते थे और शर्ट की जगह नीम का झाड़ लटका लेटे थे।बेल्ट की जगह बाँड़ु साँप बाँधते थे और छोटे बकलस के शौकिन पतला हरहरिया साँप पहनते थे।बड़े बड़े नेता बघछल्ला पहिन संसद आते थे।दुल्हा शेरवानी की जगह भैँस की छाल का जैकेट और बुजुर्ग ससुरे एवँ समधी भेँड़ के चमड़े की वुलेन चादर ओढ़ते थे।दुल्हनेँ मेकअप मेँ भभूत घँसती थी और होँठ पर लाल अढ़वल का फूल घस लेती थीँ।हड्डी की चुड़ियाँ,खरगोश के बच्चे के चमड़े का पर्स ये सब देख आप बौरा गये।युवतियाँ अंगुर खाने की जगह कान मेँ पहनती थीँ और नाक मेँ लौँग की नथिया गाँथ लेती थीँ।अच्छा लोग आपस मेँ बातचीत भी करना नहीँ जानते थे।हर बात मेँ लोग भाई माई बहन बेटी एवं रोटी कर रहे थे।संस्कार नाम का कोई चीज नही था।बेटा बाप की छाती पर चढ़ फेसबुक चलाता था।खैनी ना देने पर एक दुसरे का गर्दन काट लेना आम बात था।लोग सब कुछ उल्टा पुल्टा कर रहे थे।पंखा धरती मेँ गाड़ देते और खटिया ऊपर कड़ी मेँ टाँग देते।साफ पानी से मोबाईल और टीवी धोते थे और पोखरा मेँ पहले भैँस घुसा पानी घिँटवा लेते तब उस कादो वाले पानी से नहाते।एक भी ऐसा मानव न था जिसको जीने की कला आती थी।आप समझ ही गये थे सारा कंडिशन।आखिरकार आपको यही सुधारने तो भेजा गया था। आपको एक बड़ा परिवर्तन करना था।सोचा"हे भगवान कितना कुछ सिखाना होगा मानव को..एक दो साल मेँ नहीं फरियायेगा और इसमेँ बजट भी बड़ा चाहिए।सेना और सरकार सबकी मदद भी लेनी पड़ सकती है।"और बाबा आखिरकार संसार का हो या ना हो पर भारत का सौभाग्य कि इसकी शुरूआत आपने भारत से ही की।आपका आना,दिल धड़काना..प्यार आ गया हो बाबा प्यार आ गया कसम से।बाबा मैँ भाग्यशाली हूँ कि मैँ आपके युग मेँ पैदा हुआ और अब मैँ जीने की कला सीख पाऊँगा।मैँ अपने पूर्वजोँ की भाँति बिना कलाकारी के जिये नहीँ मरूँगा।बाबा आईए,हमारे गाँव भी आईए बाबा।हमेँ भी जीने की कला जल्द सिखाईये।बाबा आज तक हम जिया धड़क धड़क पर टाँग हिला के नाचते रह गये पर आपसे जाना कि उस गीत का मूल मर्म है"दोनोँ हाथोँ से गोल गोल कर छोटा छोटा जिया बना के कंधे उचका नजाकत से कमर हिला महिलाओँ-पुरूषोँ मेँ गुलाब फेँकना"बाबा जीने की ये कला हमको भी सिखाईये न बाबा।बाबा आप इसी तरह मानवता की सेवा करते रहेँ..खाने,कमाने और खट खट के मर जाने वाली पीढ़ी को जीने की कला सिखाते रहेँ।ये,राम,कृष्ण,बुद्ध,महावीर,नानक,कबीर,औलिया,बाबा फरीद,सूर,तुलसी से लेकर विवेकानंद और गाँधी तक सबने तो बस टाईम पास किया।न खुद जीना जाने ना कुछ सिखाया।जीने की कला तो आप सिखाते हैँ बाबा।बाबा दिल्ली मेँ एतना बड़ा मेला लगाये हैँ,तब न शहर के लोग जीने की कला सीख लेते हैँ और फिर हम गाँव के लोग को पिछड़ा बोल चिढ़ाते हैँ।सो बाबा प्लीज गाँव भी आईए न।हमलोग का यही एक ठो निवेदन था आपसे।धड़काईये न तनी यहाँ भी जिया।जय हो।(नोट-पोस्ट मेँ कहीँ कहीँ विभत्स रस चरम पर है,सो पढ़ने वाले अपनी गारंटी पर पढ़ेँ।कोमल दिल वाले परहेज करेँ:-D)जय हो।

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