Thursday, March 10, 2016

Defination of Deshbhakti

हमेँ मोटे मोटे विमर्श,मोटी मोटी किताबोँ से बात कम समझ आती है।मैँ समझदारी सीखने के लिए गाँव देहात की सँकरी पतली पतली गलियाँ घुमता हूँ।चौड़े चौड़े खेत और भरे भरे जंगल घुमता हूँ।दर देहात मेँ दुआर के चौखा पर बईठे बीड़ी फूँक रहे बुढ़े बुढ़ियोँ से लेक्चर सुनता हूँ।यही मेरे मन के संस्थान हैँ।इन्हीँ कक्षाओँ मेँ सुनी एक कहानी याद आयी है।दशकोँ पहले हमरे गाँव मेँ दो जिगरी डकैत दोस्त हुआ करते थे..एक था अदुआ और दुसरा जब्बार मियाँ।एक बंगाली पंडित था और दुसरा मुस्लिम।इन दोनोँ डकैतोँ का इलाके मेँ तो नाम था ही साथ साथ उत्तर बिहार के सीमा से ले बंगाल तक के डकैती नेटवर्क मेँ इनका जलवा था।परिवार के नाम पर अदुआ का कोई ना था जमाने मेँ,बस एक बुढ़ी विधवा माँ थी जो रोज सदा भगवान की चौखट पर बैठी रहती कि बेटा जीता रहे.डकैती छोड़ कुछ कमाये धमाये,एक अच्छी जिँदगी जीये।अदुआ शरीर से बाबर था और क्विँटल भर धान का बोरा पीठ पर ले दस ईँच के दिवाल पर चल लेता था और तीन मंजिले जितनी ऊँचाई से वो वैसे मजे मेँ कुदता था जैसे आज के हीरो रजाई मेँ कूदते हैँ।अदुआ के पास बलशाली बदन था तो एक ठोस चट्टानी वसुल भी था।उसने कभी अपने जीवन मेँ अपने गाँव और आस पास डकैती ना की।उसने अपने संपर्क के सारे ज्ञात डकैती टीमोँ को भी साफ कह रखा था कि न तो वो अपने गाँव ईलाके मेँ डकैती करेगा और ना किसी को करने देगा।उसके जिँदा रहते मेरा गाँव वैसे ही निश्चिँत हो सोता था जैसे सीमा के जवान के कारण ये देश बेफिक्र सोता है।मेरे गाँव कोई पुलिस थाना न था।सुरक्षा के नाम पर थे भी तो दो हाफ पैँट वाले दतुवन से दिखते चौकीदार जो डंटा घर रख चलते थे कि कोई उन्हीँ से डंडा छिन उनको ही ना धो दे।हमारे गाँव की सुरक्षा की गारंटी था तो "अदुआ डकैत"।मेरे बाबा ने बताया कि एक बार वो एक दिन सुबह उठे तो देखा आँगन वाले बरामदे की खुँटी मेँ टँगा उनका नया सिल्क वाला ढीला कुर्ता गायब था।समझ गये चोरी हो गया।एक दिन बाद दोपहर अखबार मेँ कुर्ता लपेटे अदुआ हाजिर हो गया।बाबा देख अकबका गये"ई का है अदुआ"।अदुआ ने हाथ जोड़ माफी माँग हँसते हुआ कहा"अब माफ करियेगा पाहुन।अरे कल एक ठो बिहा मेँ जाना था बल्लु डकैत के बेटी के बिहा मेँ, सो सोचे आपका बाला सिल्क ठीक रहेगा।तनी चमकेँगे।परसोँ आपको पहिने देखे थे हटिया मेँ त पसंद आ गया।का बतायेँ,ले गये लेकिन छोटा हो गया साईज मेँ।बिना पहिने ही लौटा रहे हैँ।जल्दी जल्दी मेँ सेठ जी का कुर्ता निकाले तब गये बिहा मेँ।उनका भी लौटाने जा रहे हैँ।"ये था अदुआ का समाजवाद।खैर ये अलग विडंबना से भरी एक क्रुर कहानी है जिस गाँव की सुरक्षा से अदुआ ने कभी किसी लालच मेँ कोई समझौता ना किया उसी गाँव ने एक बार उस पर गाँव मेँ हुए एक भीषण डकैती का आरोप लगाया।ये जान अदुआ गाँव छोड़ निकल गया।गाँव के कुछ बुजुर्गोँ ने उसे अपने भरोसे मेँ लिया और अदुआ ने ये वादा किया कि वो डकैतोँ का पता लगा लेगा कि किसने किया और माल भी वापस लायेगा।गाँव के बुजुर्गोँ और लोगोँ पर भरोसा कर वो वापस जैसे गाँव आया सबने उसे धोखे से पकड़ा और एक कुँए के पीड़ पर ले जा पत्थर से कुचल कर मार डाला।वो अदुआ जो गाँव के लिए मर जाने को तैयार रहता था गाँव मेँ मार दिया गया।लेकिन अपने जिँदा रहते अपनी औकात भर उसने गाँव की सुरक्षा से न कभी समझौता किया ना किसी को डाका डालने दिया।ये था उसका गाँव इलाके से प्रेम और लगाव।उधर जब्बार मियाँ निशाने मेँ जसपाल राणा पर भारी था,रात के अँधेरे मेँ भरी भीड़ मेँ भी देशी पिस्टल से गोली दागता और लगती उसी को जिसकी सुपारी वो मुँह मेँ चबाये रहा होता था।बम बनाने का खिलाड़ी और चलते चलते बम बाँधने का माहिर।एक हाथ धरे लुँगी मेँ बम जमा रख एक हाथ से लगातार बम वैसे पटकता था जैसे आप बारात मेँ सुस्ताते ताश खेलते वक्त लाल पान का एक्का आ जाने पर जोश मेँ पत्ते पटकते हैँ।उसका भी वसूल मुसल्लम था,बुलंद था।उसने भी कभी अपने गाँव से गद्दारी ना की।एक बार वो टीम के साथ भागलपुर के पास बस लुट रहा था।बस मेँ मेरे गाँव के भी दो लोग थे।यकिन जानिए सुबह वो उन दोनोँ का लुटा माल ले के गाँव आया और लौटाया।साथ ही बोला कि,इस रोड मेँ कभी भी लुटाओ तो बता देना,सामान वापस मिल जाया करेगा।अंत समय मेँ एक बार बम बाँधते उसका एक हाथ उड़ गया और आँखोँ की रोशनी चली गई।अब उसके पास एक ही रास्ता था कि बाहर के डकैतोँ के लिए स्थानीय मालवाले घरोँ की मुखबरी करे और लुट के बाद अपने घर मेँ आश्रय दिया करे।बदले मेँ उसे उसका हिस्सा मिल जाता।लेकिन जब्बार मियाँ ने उसी गाँव मेँ भीख माँग बाकि जीवन गुजारा पर कभी गाँव से गद्दारी ना की।कहना बस इतना था साब कि,भले ये दोनोँ डकैत थे,पर अगर ये देश आपको अपना गाँव लगे तो प्लीज एक बार मेरे गाँव के अदुआ और जब्बार मियाँ की नजर से गाँव देख के देखिये आपको"देशभक्ति"-"राष्ट्रभक्ति" सबकी परिभाषा समझ आ जायेगी।इसका अर्थ समझ मेँ आ जायेगा।इसकी खातिर हर कीमत चुकाने का जज्बा समझ मेँ आ जायेगा।वतन पे मरने वालोँ को यूँ ही शहीद नहीँ बोलती दुनिया।बड़ा जिगरा चाहिए।आईए एक बार अदुआ और जब्बार की नजर देखिये..कहाँ आप देशभक्ति को डिबेट और विमर्श से समझने और समझाने मेँ लगे हैँ।हमारी कम पढ़ी लिखी दुनिया मेँ तो इसका अर्थ डकैत अदुआ-जब्बार भी समझा के चले जाते हैँ।जय हो।

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