Sunday, February 7, 2016

शाही स्नान

"शाही स्नान":-)महराज ई भी कोई शाही स्नान है।ये हजार की संख्या मेँ हाथ मेँ डमरू त्रिशुल लिये एक साथ नंगा पुँगा हुए देह मेँ कादो कीचड़ भूत भभूत घसे एक दुसरे पर चढ़े ठेलम ठेली हुरकुच्चा हुरकुच्ची किये अघोरियोँ का चिचियाते हुए पानी मेँ डुबकी लगाना और फिर पुनः भूत भभुत मले निकल लेना, ये आपको "शाही स्नान" दिखता है?पोखरा मेँ भैँस भी ऐसहीँ त नहाता है। साहब "शाही स्नान" देखना है तो आईये कभी किसी गाँव मेँ और देखिये नयका नयका ससुराल आये "पाहुन" यानि "दामाद" mean "जीजा" का स्नान:-)।सुबह होते पाहुन को तकिया के पास ही ठीक कान से सटे गिलास भर गर्म चाय रख राजकीय सम्मान के साथ जगाया जाता है।चाय पीने के बाद पाहुन देह हाथ ऐँठते खटिया से उठते हैँ और मँझले साले की तरफ देख हल्का मुस्कुराते हैँ कि साला झट गमझा के नीचे खैनी रट ऐसे सफाई से खैनी जीजा तक पहुँचा देता है जैसे पलक झपकते सर्बिया के रिफ्युजी हंगरी पहुँचा दिये जाते हैँ।अब शुरू होती है पाहुन यानि जीजा की शाही स्नान यात्रा:-)।तीन साले पाहुन को स्कॉट करते हुए कुँआ की तरफ निकलते हैँ।छोटका बंटु बाल्टी लोटा और सरसोँ तेल ले के लेके आगे आगे चलता है,सबसे छोटका संटुआ गमझा,लुँगी,कटोरी मेँ दुध बेसन और नीँबु का लेप,सिँथॉल साबुन लिये चल रहा होता है।एक साला खैनी रटाते खिलाते और मोबाईल पर भरत शर्मा ब्यास का गाना फूल साउंड मेँ सुनवाते हुए एकदम साथ साथ चलता है।कुआँ पर पहुँचते ही पाहुन अपनी गंजी लुँगी खोल हवा मेँ उछालते हैँ जिसे लपक कर मँझला साला कैच करता है।तब तक बंटु कुँऐँ से एक बाल्टी पानी निकाल मुंडेर धो के वहाँ पाहुन के बैठने की जगह बना देता है।पाहुन बैठ के गाल पर बेसन घसतेँ हैँ और इधर संटुआ पीठ पर सरसोँ तेल रगड़ रहा है तब तक जीजा मँझले से कोई फिल्मी गाना का फरमाईश कर देते हैँ"अरे जरा कुमार सानु का कोनो लगा दीजिए घोल्टन जी"मँझला साला घोल्टन तुरँत पैँट की जेब से दुसरा मेमोरी कार्ड निकाल अंदाज फिल्म का गाना "आयेगा मजा बरसात का" लगा देता है।इधर बँटु बाल्टी भरे जा रहा है और संटुआ लोटा लोटा पानी डालते जाता है पाहुन पर,इतने मेँ घोल्टन जेब से क्लीनिक प्लस सैँपु का छोटा पाउच निकाल उसे फाड़ पाहुन के सर पर गिराता है।संटुआ एक छीँटा उस पर पानी का मारता है।पाहुन एकदम फेने फेन हो जाते हैँ,सारा कुँआ गमगम करने लगता है,बगल मेँ रोपे प्याज की बाड़ी मेँ भी पाहुन की खुशबु उतर जाती है कुँआ से खेत जाती नाली के रास्ते।पाहुन देह मेँ लगाने के लिए जैसे साबुन उठाते हैँ कि घोल्टन"अरे अरे आप छोड़ दीजिए न जीजा जी,संटुआ घस देगा,ऐ संटु बढ़िया से मल दो साबुन तनी"।करीब 5 मिनट फेन से खेलने के बाद अब बंटु सीधे बाल्टी बाल्टी पानी पाहुन पर डालता है।करीब दस बाल्टी के बाद"जीजा जी कैसन लग रहा है,फरेश हुए कि नहीँ":-)।"हाँ एकदम टनटन हो गया हो,लाईए गमझा जरा"।सुनते संटुआ गमझा देता है,फिर पाहुन लुँगी गँजी बदलते हैँ।घोल्टन कहता है"अरे संटुआ,तूम लोग जीजा के लुँगी जंघिया खंगार धो के आव,हम इनको ले के जाते हैँ,ढेर धूप हो रहा है"।पाहुन फरेश हो पुनः ससुराल गेँदा फूल की तरफ बढ़ते हैँ।गुरू ई हुआ ना"शाही स्नान":-)भइया हम गाँव के लोग हैँ,इतनी ही दुनिया देखी है और जितनी देखी है उसमेँ"जीजा के स्नान" से ज्यादा "शाही स्नान" हमने तो नहीँ देखा।क्षमा करियेगा।जय हो।।

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