Wednesday, February 10, 2016

ऊ जब भी टिकट कटाता है त राजधानिये का

असम जाने वाली"डिब्रुगढ़ राजधानी" मेँ हूँ।पर दो बजे दिल्ली से खुली इस ट्रेन के जिस बोगी मेँ हूँ वो पूरा यूपी बिहार है।पूरी बोगी बड़े बड़े लाल और पीले रंग की VIP अटैँची से भरी हुई है।सीट के नीचे सामान ठूसा पड़ा है।अक्सर बिहार यूपी के इन परिवारोँ भरपूर सामान ले जाते देखा है पर ये भी जान लिजिए कि अगर जिँदगी से हिसाब करेँ तो ये दिल्ली नोएडा और गुड़गाँव मेँ खट खट के उनके बहाये गये खून पसीने से कम ही ठहरेगा।सामने एक 55-56 वर्ष के बुजुर्ग बैठे हैँ गणपत सिँह जो अपना ईलाज कराने गये थे दिल्ली बेटे के पास।सीट पर बैठते गणपत जी ने मफलर टाईट करके कान मेँ बाँध लिया और कंबल टाँग पर डाल पलथी मार बैठ गये हैँ।वो एक अपने साईज से सवा नंबर ज्यादा एक सिलेटी रंग का बंडी डाले हुए हैँ जो शायद बेटे ने स्नेहवश पहनाया।अक्सर गाँव से शहर गया आदमी किसी से उपहार पाते इतना संकोची होता है कि वो ट्रायल रूम जा के फीटिँग नहीँ देखता,वो तो फीलिँग देख के कपड़े ले लेता है।उनके साथ हैँ उनके केयर टेकर "अंबुज जी"।ये अंबुज जैसे लोग वो लोग हैँ जो हमेशा गाँव समाज के लोगोँ के लिए कहीँ भी आने जाने तैयार रहते हैँ।अंबुज टाईप लोग समाजिक कार्योँ के लिए किसी भी रैमन मैग्सेसे पुरस्कार पा गये सामाजिक कार्यकर्ता से ज्यादा काम अपने गाँव समाज के लिए कर चुके होते हैँ पर ये उनका दुर्भाग्य कहिये कि ऐसे लोग बेचारे पुरस्कृत होने की जगह निठल्ला बेगारी खाने घुमने वाले कहाने लगते हैँ।बगल मेँ एक लड़का बैठा है जो लैपटॉप निकाल चार्जर ठूस रम गया है।बाकि दो तीन और लोग मोबाईल पर व्यस्त हैँ और कुछ मिनट मेँ सारी बोगी चार्जर निकाल के तार मेँ उलझ गई है।क्या करे आदमी सिर्फ खर्च हो रहा है और बैटरी खतम है।आदमी मेँ मसाला कम है और चलने की तलब ज्यादा है।तभी तो जैसे तैसे चार्ज होना मजबुरी है।गाड़ी खुलते गणपत जी बड़े संतोष के भाव मेँ बोले हैँ"देखिये अंबुज जी केतना राईट टाईम खुल गया।एक्को सकेँड का लेट नहीँ"।अंबुज बोले"अरे महराज त रजधानी है।कोनो जनरल ट्रेन नही न है"।गणपत जी मुस्कुराते हुए मोबाईल पर उँगली फेरते बोले हैँ"हाँ भई अब अनुराग के बेबस्था है।ऊ जब भी टिकट कटाता है त राजधानिये का"।तब तक पैँट्री वाले खाना लेकर आ गये।गणपत जी ने देखते मना कर दिया"ऐ अंबुज जी आप ही खा लिजिए।हम त अनुराग के डेरा पर भात एतना खा लिये हैँ।आप त देखबे किये"। अंबुज ने खाना का ट्रे लपकते हुए कहा"हय अरे त कोनो पैसा लगना है का?ई त टिकटे मेँ न इनकुलूड है।दु रोटी मार लिजिए।बर्बादे न होगा फेर खनवा"।गणपत जी ने कंबल हटा"अरे उ त हमको पता है ही।लाईए खाईए लेँ।अच्छा एक बात बताईये अंबुज जी,ई अनुराग का कैसन लगा जॉब आपको?"अंबुज तब तक एक रोटी निगल बोले"अरे एक नम्बर सेट हो गया है।देखे नहीँ कितना तगड़ा त है सबकुछ।का फस्ट किलास खान पान,रहन सहन।अच्छा ई फलेटवा खरीद काहे न लेता है जिसको लिया है भाड़ा"।गणपत जी थोड़ा हँसे और थोड़ा फँसे भाव से बोले हैँ"हाँ ले लेगा।दाम भी त सोना के भाव है।अबकि रिटायमेँटवा का कुछ पैसा निकलेगा त देँगे और कहेँगे कि खरीद लो"।अंबुज ने हाँ मेँ सर हिलाया और तब तक खाना समाप्त हो चुका था।गणपत जी फिर बोले"अच्छा एक बात आप देखे।ई अनुराग के एनीटाईम इंगलीशे बोलना पड़ता है।और एक्को शब्द मेँ अटकता नय है जवान"।अंबुज ने पानी का बोतल खोल बोला"अरे एमेएनसी कंपनी मेँ है।ऊँहा हिँदी चलेगा?एक मिनट नय ठहरता है ऊ सब जगह पर बिना इंगलिश के आदमी"।गणपत जी गर्व से गर्म हो मफलर ढीला करते हुए पूछे हैँ"अच्छा हो ई एमेनसी कंपनी का होता है।मने टाटा बिड़ला से केतना आगे है"।अंबुज जी ने अपने आर्थिक जानकारी का सारा निचोड़ चेहरे पर लाते हुए कहा"अरे टाटा बिड़ला का है ई कंपनी के आगे।एमेनसी का मतलब है बिदेशी कंपनी।इसका बड़का लंबा चौड़ा नेटवरकिँग है।मने ईसमेँ दू पैसा कम भी मिले पर इसका एगो अलग भेलू है"।तब तक एक महीन शालिन रजनीगंधा की खुशबु मेँ लिपटी आवाज आई"एकच्युली MNC का मिनिँग है मल्टी नेशनल कंपनीज।इसके कई कंट्रीज मेँ ब्राँचेज होते हैँ"।सब उस लैपटॉप मेँ बँधे युवक की तरफ देखे।गणपत जी ने पहला और आखिरी सवाल पूछा उस लड़के से"त कैसा है ई कंपनी बाबू?हमारा लड़का अनुराग इसी मेँ है।"।लड़के ने चश्मा पोछा और एक सारगर्भित टिप्पणी कर पुनः लैपटॉप मेँ लग गया"देखिये अंकल अब कंपनी कंपनी के नेचर एण्ड कई डाईमेँशन पे डिपेँड है।कंपनी की मार्केट वेल्युज क्या है एण्ड मेनी प्वाईँट कंसीडर करने होते हैँ।मेय बी कि कंपनी अच्छी हो आपके लड़के की"आगे गणतप जी ने कुछ ना पूछा बस अंबुज की तरफ देखे और लेट गये।अब रात हो चुकी है और एक पटना मेँ व्यवसाय करने वाला युवा उद्यमी फोन पर किसी को दे रहा है"अबे ललन।मैँ आईये जाऊँगा भोरे तक।अभी राजधानी मेँ हूँ।और सूनो ऊ अभी पेमेँट का बात ना करो।देखो अभी हम सिँगापूर से माल मँगा रहे हैँ।पैसा वहाँ फँसा है।साला अभी सिँगापूर बाजार मेँ चल रहा है हड़ताल।टूटेगा, माल आयेगा तब देँगे तुम्हारा वाला बकाया"।तब उसकी पत्नी ने खाना खाते चिल्लाया"अरे धरिये न फोन।ई खाना है।ना तेल ना मसाला।आपको बोले कि जहाज से चलिये लेकिन आपका त रेले नय छुटता है।ई जनम कबो चढ़ेँगेँ कि नय जहाज पर पता नय"।तब तक बीवी का पानी बोतल खतम हो गया है माँगने पर दुसरा बोतल स्टाफ ने मना कर दिया है।पति बौखला गया है और कंप्लेन बुक मँगाया है।बीवी पति को कोस रही है"आप हे एक बोतल पानी नय आता है।दुकान मेँ त शेर बनके गलियाते हैँ स्टाफ को।ईहाँ बोली नय खुला"।पति माथा धर बैठ गया है।ईधर बहाना मिला है के लोग पुनः रेल व्यवस्था को गरियाने मेँ लग गये हैँ।पिछले सारे रेल मंत्रियोँ के कुल खानदान का हिसाब कर रही है यात्री जनता।तब तक गणपत जी ऊपरी बर्थ से बोले हैँ"अरे अंबुज जी रात के जगले रहियेगा।दो बजे आयेगा पटना।वैसे भानू,रामपरवेश,जगनारायण,मनचल,परशु,मुनिराज सबके फोन कर कह दिये हैँ कि राते 1 बजे जगा देगा।पटना आवे से पहले"।ये सून मैँ भी निश्चिँत हूँ..मुझे भी पटना उतरना है।जय हो।

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