Sunday, February 7, 2016

"लालटेन"..रौशनी का घर

कल आधी रात कुछ समय के लिए लाईट चली गई तो बिस्तर से अंदाजन उठ हाथ टटोल के मोमबत्ती खोजने लगा।5 मिनट किचन मेँ हाथ टटोलने के बाद एक आधी जली पिघली मोमबत्ती मिली।जैसे ही जलाने के लिए माचिस उठाया कि खयाल आया कि मैँ दिल्ली जैसे जागरूक महानगर मेँ हुँ जहाँ मैँने जाना कि"मोमबत्ती एक राजनीतिक वस्तु है जो रात मेँ नहीँ दिन मेँ जलाई जाती है और इससे प्रकाश नहीँ,भड़ास निकलता है"।इतना मन मेँ आते चुपचाप वापस जा रजाई मेँ घुस गया और तब याद आने लगा मुझे अपने गाँव का"लालटेन"।वो एक जमाना था जब गाँव के हर घर की चौखट पर शाम एक लालटेन जरूर टँगा होता था।मेरे पापा अक्सर कहा करते हैँ"दरवाजे पर ये दो चीजेँ रहनी ही घर को घर बनाती हैँ,एक तो साँझ को जलता लालटेन और दुसरा दुआर की चौकी पर बैठे बुजुर्ग"।हाँ उस समय गाँव मेँ भले बिजली नहीँ थी,पर रौशनी जरूर थी।मेरे दादा जो कि सरपंच थे वो तो साँझ होते हाथ मेँ लालटेन लिये एक बार मुहल्ला घुम आते कि कहीँ कोई समस्या तो नहीँ,कोई बीमार तो नहीँ..बुढ़ापे मेँ भी लालटेन की मीठी रौशनी मेँ उनको समस्याएँ साफ दिखती थीँ जो आज लोगोँ को जलते दुधिया लाईट मेँ भी धुँधली दिखती हैँ।वापस फिर देहरी पर बिछी चटाई पर आ के लालटेन रख देते थे जहाँ गाँव के कुछ बुजुर्ग जवान आधी रात तक ताश खेलते थे।लालटेन की धीमी ऊँची होती रोशनी मेँ भले ताश का पत्ता साफ दिखे ना दिखे पर लोगोँ का आपस मेँ स्नेह,घुलना मिलना और साफ दिल साफ साफ दिखता था।रात को सोने वक्त लोग खटिया के नीचे लालटेन जरूर रख सोते थे।केवल रात को खटिया के नीचे लालटेन का होना NSG कमांडो की सुरक्षा वाला विश्वास देता था।मन मेँ लगता था कि रात बिरात कोई बात हो जाए तो लालटेन है न,मान लो कहीँ कुछ खरखर की आवाज सुन ली,कहीँ कुछ धड़ाम की आवाज सुन ली,कहीँ गाय रंभाने की आवाज सुन ली,कहीँ लगा कि कुछ गड़बड़ है तो फटाक उठे और लालटेन तेज कर लाठी उठाया और ईलाका चेक कर आये।लालटेन हाथ मेँ हो तो बड़ी हिम्मत रहती थी।मतलब लालटेन रौशनी और भरोसा दोनोँ देता था।आज गाँव गाँव लाईट है,बिजली है पर रौशनी नहीँ।मुझे याद है कि हम शाम होते लालटेन जला पढ़ने बिठा दिये जाते थे।सूरज के ढलते जैसे हम नानी को लालटेन का शीशा पोछ के बाती डाल के लालटेन जलाने की तैयारी करते देखते हमेँ लगता जैसे कसाई याकूब मेमन के फाँसी की तैयारी कर रहा है।सात बजे मास्टर साब आते,वो खुद बाती का वोल्टेज बढ़ाते और हमेँ बीजगणीत बनाने देते।लालटेन के आसपास कई कीड़े मकोड़े आ के फड़फड़ाते और खुद जलती लौ की मुहब्बत पर कुर्बान भी हो जाते।मास्टर साब उन कीड़ोँ के पार्थिव शरीर दिखाते हुए कहते"चलो जल्दी बनाओ रे हिसाब,बैठ के कौँपी क्या ताकता है,साले कलम से कान खोद रहा है।जान लो अगर फेर गलत हिसाब बनाया तो ई कीड़वा जैसा फड़फड़वा के मारेँगे"।हम किसी तरह सही गलत हिसाब बनाते और मास्टर साब हमारा रोज हिसाब लगाते।हमेँ याद है कि,साँतवीँ के छात्र के रूप मेँ लालटेन की पीली रौशनी मेँ निर्मल कॉपी के हल्के पीले पन्नोँ पर जब हम गंगा नदी पर लेख लिखते थे तब "गंगा नदी" आज की तरह इतनी गँदी और काली ना थी साहब।अच्छा लालटेन तभी रौशनी के साथ साथ जिँदगी का प्रतीक भी था।रात के घुप्प अँधेरे मेँ किसी सुनसान पगडंडी पार करते जब दूर कोई लालटेन टिमटिमाती नजर आती,राहगीर जान जाता कि ओ आगे कोई गाँव है,कोई घर है।अच्छा लालटेन केवल घर ही नहीँ बल्कि भूत के भी काम आता था।मेरे पापा जब भी भूत का किस्सा सुनाते तो बताते"अस्पताल के पीछे वाले पोखर के जामुन पेड़ के पीछे एक सफेद साड़ी पहने औरत लालटेन लिये खड़ी थी"।सच दुनिया के किसी भूत के पास ना तब ट्युब लाईट या सीएफल था ना अब।अच्छा मेरे गाँव के घर अब भी जब कि चौबीस घंटे भड़भड़ाते जैनेरेटर की सुविधा है फिर भी चार लालटेन शाम को तेल भर तैयार रहता है।मैँ गाँव मेँ मुख्य घर से अलग गाय वाले गोहाल के पास खपरैल कमरे मेँ सोता हुँ और आज भी मम्मी एक लालटेन जला के मेरे खटिया के पास रख देती है और तब जा खुद निश्चिँत हो सोती है कि,चलो बेटे के पास लालटेन है,रात को डर नहीँ लगेगा।मेरे घर चार लालटेन का कारण ये है कि एक दो तो सदा मेरे पापा के उपयोग मेँ आता है।वो जब भी गुस्सा होते हैँ,सामने रखा लालटेन तड़ित चालक का काम करता है।मेरे पिता गुस्से मेँ अक्सर लालटेन पटक देते हैँ और इस तरह लालटेन हमेशा किसी भी दुसरी चीज को क्षतिग्रस्त होने से बचा लेता है।अब तो गाँव मेँ भी लालटेन लगभग लुप्त है और उसकी जगह चाईनिज लैँप आ गया है।इसकी सफेद रौशनी आँख को चुभती है।इसमेँ लालटेन वाली कोमलता नहीँ।लालटेन का पीला मिट्टी वाली रंग लिये रोशनी बड़ी मीठी होती थी।ये बात अलग है कि लालटेन को भी अब घर की चौखट से उतार राजनीति का चिन्ह्र बना चुनाव मेँ उतार दिया गया है।अभी अभी बिहार मेँ लालू जी ने नीतिश जी के गले मेँ अपने दो दो लालटेन टाँगे हैँ।एक का गाल फूला और "लाल" है,दुसरे का वजन लगभग"टेन" है।उम्मीद है कि अँधेर दिखते बिहार को थोड़ी रौशनी मिले।खैर राजनीति वाला राजनैतिक लालटेन तत्काल लालू जी का घर अंजोर किये हुए है।हमेँ तो अपने दुआर पर लालटेन बचाना है।इस बार सोचता हुँ कि,गाँव से एक लालटेन लेता आऊँगा।बड़े महानगरोँ की लाईट का कोई भरोसा नहीँ। और आखिरी बात,कि लालटेन हमारी जड़ोँ और हमारी मिट्टी से इतना जुड़ा हुआ है कि देखिये न उसमेँ "मिट्टी का तेल" जलता है।जय हो।

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