Wednesday, February 10, 2016

आदमी देवता हो जाना चाह रहा है।

आदमी देवता हो जाना चाह रहा है।वो चाहता है कि वो बोले और लोग उसे ईश्वर की तरह सुनेँ।वो शायरी,कविता,कहानी,उपन्यास,संस्मरण और न जाने कहाँ कहाँ से दया,करूणा,निष्पक्षता,समानता,सब बटोर फेसबुक पर अपना मंदिर खोले बैठा है और वो चाहता है कि उसके मंदिर के आगे लंबी कतार लगी रहे,लोग लाईक चढ़ायेँ..धन्यवाद का प्रसाद ग्रहण करेँ और पुनः आयेँ।मगर इन सब के बीच जरा सोचिए कि चलिए मैँने किसी को अपना "भगवान" मान लिया।आप जानते हैँ भगवान होने का मतलब?मैँ चाहुँगा सुबह चार बजे उठ अपने भगवान को ठंडे पानी से नहवाना।उनकी काँख मेँ जमेँ काई को किसी लाल कपड़े से रगड़ रगड़ छुड़ाना।गीले वस्त्र पहनाना और फिर शुरू करूँगा उनका पूजन।सबसे पहले भगवान के सर नारियल फोड़ना चाहता हुँ।फिर डालुँगा उसके सर पर तीन दिन का रखा कच्चा लठलठ करता दुध। मैँ चाहता हुँ उसके कपार पर पहले चंदन रगड़ देना और फिर पुरे मुँह पर लाल अबीर का लेप।फिर घसुँगा लाल रोली और उस पर दही शहद का घोल।मैँ खोँसना चाहता हूँ उसके दोनोँ कानोँ पर कनेल के पीले फूल और चढ़ाना है मुझे उसके सर पर धतुरा का सफेद फूल।दो गेँदा फूल उसकी टाँग के बीच रखना है और एक बेलपत्र साटना है उसके पेट पर।फिर खिलाना है बिना उसकी पसंद पूछे अपनी औकात के हिसाब से खरीदी गई लालमोहन साव की दुकान वाली ठोस लड्डु।एक टुकड़ा तोड़ ठुँसना है उसकी अधखुली मुँह मेँ और चुलू भर पानी करना है अर्पण उसकी प्यास बुझाने को।फिर चढ़ाऊँगा उसके कंधे पर दो गलगलाये केले और पिचके संतरे की दो फाँक।फिर निकालुँगा अपने झोले से भर मुट्ठा अगरबत्ती और जला के खोँस दुँगा ठीक उसकी कमर के पास जिससे निकलने वाला गमकदार धुँआ लगातार उसकी आँखोँ और नाक मुँह मेँ घुसता जायेगा और वो कुछ ना बोलेगा।इसके बाद श्रद्धा से बिना निशाने फेकुँगा उसके देह पर कुछ खनखन करते सिक्के जो उसके सर लगे या आँख पर इसकी कोई गारंटी नहीँ।मेरे और जाने के बाद भी खुली रहेगी उसकी चौखट जहाँ घुस आयेगी कोई बकरी और खायेगी उसके काँख से नोच कर फूल और पेट पर से खीँच कर बेलपत्र।एक कुत्ता घुस आयेगा जो चाटेगा उसके पैर जहाँ कुछ देर पहले गिराये थे मैँने लड्डु और दही शहद की कुछ बुँदे।उसके बदन पर चढ़ी रहेँगी काली चीटियाँ और जायेगी मुँह तक जहाँ मेरे द्वारा ठुँसे लड्डु के कुछ कण फँसे हुए थे।मेरा भगवान तब भी कुछ ना बोलेगा।वो हाथ उठाये मुस्कुराते फिर भी कृपा की मुद्रा मेँ ही होगा।वो सबको कृपा देता है।उसकी करूणा और समानता का आलम ये है कि वो आदमी,बकरी और कुत्ते का फर्क नहीँ करता।वो मंदिर नहीँ बदलता,वो घिस जाता है पर तटस्थ रहता है।वो देवता इसलिए नहीँ कि हमने आपने उसे देवता मान लिया है।बल्कि वो देवता इसलिए है कि उसने अपने पूजे जाने की कीमत भी अदा की है।सह पाओगे इतना कुछ?दिखा पाओगे ये करूणा?तो आओ मेरा देवता बन जाओ। मैँ खोज रहाँ हुँ वो आदमी,जिसे मैँ अपना देवता बना पाऊँ।है कोई?जय हो।

1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बर्फ से शहर के लिए " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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